The Full Lyrics for "पानी में मीन प्यासी".
Kabir bhajan "पानी में मीन प्यासी":
पानी में मीन प्यासी - कबीर भजन
स्थायी
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
अंतरा 1
घर में वस्तु नज़रिया न आवे, बाहर ढूँढे उदासी।
काहे भटके मूरख प्राणी, घट में तेरे अविनासी।
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
अंतरा 2
नाभि में कस्तूरी है मृग के, फिर भी ढूँढे वनवासी।
ज्यों ही घट से उठ के आया, भई हिरन को फांसी।
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
अंतरा 3
तीरथ व्रत और पूजा पाठ में, क्या पावे नर पापी?
जब तक मन में मैल भरा है, कैसे होवे रे साफी?
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
अंतरा 4
कहत कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन ज्ञान न बासी।
गुरु की शरण गहो रे प्राणी, छूटै भव की फांसी।
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवे हांसी।
0 टिप्पणियाँ