कबीर साहेब सत्य परमात्मा का अवतरण था , जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाई। यहां नीचे कुछ ऐसे 10 दोहे हैं, जो उनकी महत्ता दर्शाते हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोए। जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोए।
अर्थ - यह दोहा हमें यह सिखाता है कि हमें दूसरों के दोष ढूंढने से पहले अपने दोषों को ढूंढना चाहिए। जब हम खुद को सुधारते हैं तो दूसरों में बुराई का पता नहीं चलता।
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोए। सुख में सुमिरन करे, तो दुःख का होय धोए।
अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि हमें हमेशा सुख या दुख में परमात्मा का स्मरण करना चाहिए। जब हम सुख में होते हैं तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि ये सुख अनित्य हैं और दुःख भी आ सकता है।
काम अगिनि सब जलन करे, जो सुख दुख में होए। सुख में सुमिरन सब करे, दुःख काटे न कोए।
अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता हैकि काम की लालसा से हमें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए हमें सुख या दुख में हमेशा परमात्मा का स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से हम अपने अंतर में शांति और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।
ज्यों पानी सिंचि सिंचि करे, त्यों फल देह खाय। त्यों घट घट राम नाम है, मिटे तर तर जाय। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि जैसे जैसे पानी को बारिश से सिंचते हैं वैसे ही हमें परमात्मा के नाम का सिंचन करना चाहिए। जब हम परमात्मा का नाम को मन से जपते हैं तो हमारे अंदर के सभी दोष मिटते हैं और हम सुख शांति का अनुभव कर सकते हैं।
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सब की खैर। ना कहु से दोस्ती, ना कहु से बैर। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि हमें सबसे बराबर बनना चाहिए और किसी से दोस्ती ना करें और ना ही किसी से बैर रखें।
ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहि। मालिक को देख नहिं, देत डूबे ताहि। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि जैसे कि नैनों में पुतली होती है जो अपने आप में कुछ नहीं होती है, वैसे ही मालिक भी अपने आप में कुछ नहीं होता है। इसलिए हमें दूसरों को देखकर उनकी संपत्ति या उनकी स्थिति को देखना नहीं चाहिए।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि जब तक हम प्रेम का अर्थ नहीं समझते, हमें कुछ भी
ज्ञान नहीं होता है।जब तक किताबी ज्ञान को पढ़कर कोई कहे की हम पंडित है तो वो परमात्मा इसे नहीं मानते बल्कि जो प्रेम का अर्थ समझता है, वही वास्तविक ज्ञानी होता है।
कबीरा तेरा ज्ञान पड़े तो आधी रती जानै। ज्ञान बिना बैरी सब, ज्ञान बिना बैर। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि जब तक हमें सही ज्ञान नहीं होता, हम अपने सभी शत्रुओं को देखते हैं, जो हमारे साथ होते हैं, लेकिन जब हम ज्ञानी बनते हैं, तब हम सभी से प्यार करते हैं और हमारा दोषी नहीं होता है।
जीवत जल मरत बारिधि, गुरु की छत्री थाप। कबीरा जन निर्बल को, करि सहाई अपनाप। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि जैसे कि एक जीव जल में रहता है और जल का अधिकार होता है, वैसे ही जब हम किसी को सहायता करते हैं, हम उसकी गुरु की तरह होते हैं। इसलिए हमें सबकी सहायता करनी चाहिए, विशेष रूप से निर्बलों की।
जो तोहि लिखि पासि है, तो महिमा अपराध। कबरनि गहर बुझै नहीं, सबकहि लिखा लेख। अर्थ - यह दोहा हमें यह बताता है कि जब हम कोई गलती करते हैं और उसका अभिनय करते हैं, तो हमारा अपराध बढ़ जाता है। लेकिन यदि हम सही कर्म करते हैं और उसे गहराई से समझते हैं, तो हमारी महिमा बढ़ती है।
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